Sarojini Naidu Biography 2023 in Hindi | सरोजिनी नायडू जीवन परिचय 2023

Sarojini Naidu Biography

Sarojini Naidu Biography 2023

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई महापुरुषों ने अपना योगदान दिया लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का योगदान भी किसी पुरुष से काम नहीं था ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती सरोजिनी नायडू जी थी | सरोजिनी नायडू एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कवि, लेखिका और राजनेता थी। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम या आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण  सेनानियों में से एक थीं। साथ ही कई आंदोलन में भी उन्होंने महात्मा गांधी के शिष्य के रूप में सहयोग किया और कई बार जेल भी गई | सरोजिनी नायडू उन महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया था | उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई के साथ ही साथ  औरत की आजादी लड़ाई भी पुरजोर तरीके से लड़ी | वे न सिर्फ एक राजनेता थी बल्कि उन्हें अपनी योग्यता की वजह से भारत राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम महिला अध्यक्ष के रूप में चुना गया |  इसके अलावा, वह भारत की प्रथम महिला राज्यपाल (उत्तर प्रदेश) भी थी। इनकी रचनाओं में बच्चों की कविता, प्रकृतिक भावना , देशभक्ति, और प्यार एवं मृत्यु सभी तरह की कविताएँ शामिल हैं| लेकिन यह बच्चों के कविताओं के लिए जानी जाती थी | इनकी बचपन की कविताओं को पढ़कर पुरानी बचपन  की यादे फिर से ताजी हो जाती हैं| इसी वजह से इनको भारत देश का बुलबुल भी कहा जाता था |नीचे दिए गए टॉपिक्स से आप उनके जीवन के बारे में अधिक जान सकते हैं|

सरोजिनी नायडू जन्म एवं परिवार –

पूरा नामसरोजिनी चट्टोपाध्याय
उपनामभारत की कोकिला, भारत की बुलबुल
प्रसिद्धिकवि एवं स्वतंत्रता संग्रामी
पुस्तकेंद गोल्डन थ्रेसोल्ड (1905), द बर्ड ऑफ टाइम (1912), द ब्रोकन विंग (1917)
जन्म13 फरवरी 1879
राष्ट्रीयताभारतीय
जातिबंगाली
माता-पितावारद सुन्दरी देवी , डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय
विवाहडॉ गोविन्द राजुलू नायडू (1897)
बेटे-बेटीपद्मजा, रणधीर, लिलामानी, निलावर, जयसूर्या नायडू
मृत्यु2 मार्च 1949 (लखनऊ)

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हजारीबाग (जुक्टा) में एक बंगाली परिवार में हुआ था । इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक नामी विद्वान तथा एक उच्च शिक्षित संयुक्त प्रांत के नियंत्रक थे। उनके पिता वैज्ञानिक व डॉक्टर भी थे, जो हैदराबाद में रहने लगे थे, जहां वे हैदराबाद कॉलेज के एडमिन थे| हैदराबाद के निजाम कॉलेज की स्थापना में इनके पिता जी का अहम योगदान रहा था, साथ ही वे इंडियन नेशनल कांग्रेस हैदराबाद के पहले सदस्य भी बने हुए थे| बाद में उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े | सरोजिनी जी की माता वरद सुन्दरी देवी एक लेखिका थी, जो बंगाली भाषा में कविता लिखा करती थी | सरोजिनी जी के आठ भाई-बहन थे जिसमें सरोजिनी नायडू सबसे बड़ी थी| इनके एक भाई वीरेंद्र नाथ जो कि एक  क्रांतिकारी थे जिन्होंने बर्लिन कमेटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। इनके एक और भाई हरिद्रनाथ  कवि और एक्टर थे।

सरोजिनी नायडू की शिक्षा एवं आरंभिक जीवन –

सरोजिनी जी ने मद्रास यूनिवर्सिटी में मैट्रिक की पढ़ाई की और परीक्षा में टॉप किया था | बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने 12 वर्ष की अल्पायु में ही 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण कर ली थी | उन्हें उर्दू, तेलगु, इंग्लिश, बंगाली सारी भाषओं का बहुत अच्छे से ज्ञान था | सरोजिनी जी के पिता चाहते थे, कि वे वैज्ञानिक बने या गणित में आगे पढ़ाई पूरी करे, लेकिन उनकी रूचि कविता लिखने में थी | वे एक बार अपनी गणित की पुस्तक में 1300 लाइन की कविता लिख डाली थी, जिसे उनके पिता देख अचंभित हो गए थे  और वे इसकी कॉपी बनवाकर सब जगह बंटवाते है | वे उसे हैदराबाद के नवाब को भी दिखाते है, जिसे देख कर वे बहुत खुश होते है | उन्होंने 13 वर्ष की आयु में “लेडी ऑफ दी लेक” नामक कविता रच डाली थी। सर्जरी में क्लोरोफॉर्म की प्रभावकारिता साबित करने के लिए हैदराबाद के निजाम द्वारा प्रदान किए गए दान से “सरोजिनी नायडू” को इंग्लैंड भेजा गया था | सरोजिनी नायडू को पहले लंदन के किंग्स कॉलेज और बाद में कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन करने का मौका मिला। सरोजिनी पढ़ाई के साथ-साथ कविताएं भी साथ साथ लिखती रही। “गोल्डन थ्रेसोल्ड” उनका पहला कविता संग्रह था। उनके दूसरे तथा तीसरे कविता संग्रह “बर्ड ऑफ टाइम” तथा “ब्रोकन विंग” ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया।

सरोजिनी नायडू की शादी, पति, एवं बच्चे –

सरोजिनी जब 15 साल की थीं तभी उनकी मुलाकात डॉ गोविंदराजुलू नायडू से हुई जिसके बाद उनको उनसे प्रेम हो गया। डॉ गोविंदराजुलू गैर-ब्राह्मण थे और पेशे से एक डॉक्टर। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी ने 19 साल की उम्र में विवाह कर लिया। उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया था जो कि उस दौर में मान्य नहीं था। यह एक तरह से क्रन्तिकारी कदम था मगर उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग किया था। और इस कारण से उन्हें उनकी शादी के लिए निंदा का सामना करना पड़ा। सरोजिनी नायडू और उनके पति ने मिलकर उनकी राजनीतिक एवं साहित्यिक प्रवृत्ति को समर्थन दिया। उन्होंने सरोजिनी नायडू को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था और उनके पति खुद भी सदस्य थे। सरोजिनी नायडू और उनके पति के पांच बच्चे थे: जयसूर्या, पद्मजा, रंधीर, लेलामणि और मुकुंदा। सरोजिनी नायडू और उनके पति ने सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई थी। वे दोनों स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे थे। सरोजिनी नायडू के पति ने 1930 में अंग्रेजों के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया था और उन्हें जेल भेजा गया था | इसके बाद वह बीमार पड़ गए थे और 1931 में उनकी मृत्यु हो गयी | सरोजिनी नायडू ने अपने पति की मृत्यु के बाद उनके साथियों के साथ  स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ने का फैसला किया और राजनीतिक कार्य में भी अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं जैसे कि इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्षता एवं बंगाल प्रदेश कमेटी की अध्यक्षता को बखूबी से निभाया। सरोजिनी नायडू के बच्चों में दो बेटे थे, होगेनाहल्ली कृष्णस्वामी और जयप्रकाश नायडू। होगेनाहल्ली कृष्णस्वामी ने भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और वह भारतीय सेना के प्रमुख भी रहे थे। उनके दूसरे बेटे जयप्रकाश नायडू भी राजनीति में अपनी भूमिका निभाते रहे और वह उत्तर प्रदेश विधान सभा के नेता भी रहे थे।

सरोजिनी नायडू की प्रसिद्ध कविताएं –

सरोजिनी नायडू एक बेहद उत्कृष्ट कवि थीं। उन्होंने अपनी कविताओं में विभिन्न विषयों को छूने की कला प्रदर्शित कर रखी थी । उनकी कविताएं संस्कृति, जीवन, प्रकृति, स्वतंत्रता, और भारतीय समाज को बताती हैं। सिर्फ 12 साल की उम्र में उन्होंने फारसी नाटक “मेहर मुनीर” की रचना की, जो तत्कालीन नवाब हैदराबाद को बहुत पसंद आई थी |1905 में उनका पहला कविता संग्रह “द गोल्डन थ्रेशहोल्ड” प्रकाशित हुआ | 1912 अपने दूसरे कविता संग्रह “बर्ड आफ टाइम” और 1917 तीसरे संग्रह “ब्रोकन विंग” से उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली |1916 में उन्होंने “मोहम्मद अली जिन्ना: एन एम्बेसडर ऑफ यूनिटी” का प्रकाशन किया |1943 में “द स्क्रिप्टेड फ्लूट: सांग्स आफ इंडिया” आई | 1961 में उनकी रचना “द फीदर आफ द ड्वान” को उनकी बेटी पद्मजा नायडु ने प्रकाशित करवाया| 1971 में उनकी अंतिम रचना “द इंडियन वेबर्स” प्रकाशित हुई |

कुछ प्रसिद्ध कविताओं में शामिल हैं:

  1. नयनतरंगिणी (Nayan Taragini) – यह कविता उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। इस कविता में सरोजिनी नायडू ने जीवन की सुंदरता को बखूबी व्यक्त किया है।
  2. गंगा (Ganga) – इस कविता में सरोजिनी नायडू ने माँ गंगा की महिमा को बखूबी व्यक्त किया है।
  3. धर्मवीर (Dharmaveer) – इस कविता में सरोजिनी नायडू ने राष्ट्र के लिए जीवन की अहमियत को बखूबी व्यक्त किया है।
  4. अग्निपथ (Agneepath) – इस कविता में सरोजिनी नायडू ने शिक्षा की महत्वता को व्यक्त किया है।
  5. भारत माता (Bharat Mata) – इस कविता में सरोजिनी नायडू ने भारत माता को समर्पित किया है।
  6. पलाश के फूल (Palash Ke Phool) – इस कविता में सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय की भावनाओं को बहुत ही सुंदरता से व्यक्त किया है। इस कविता में सरोजिनी ने एक पलाश के फूल के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उमंगों, उत्साह और आक्रोश को व्यक्त किया है। यह कविता स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण कविताओं में से एक है।

कविता के शुरुआती लाइन इस प्रकार हैं:-

“पलाश के फूल, पलाश का फूल, फूलों का राजा है पलाश का फूल”

सरोजिनी नायडू ने कविता में बताया है कि पलाश के फूल की सुंदरता और इसकी भाँति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उमंग के साथ-साथ इसके अभिव्यक्ति की शक्ति को भी दर्शाता है। कविता में बताया गया है कि पलाश के फूल न तो हरे होते हैं न ही लाल, उनकी सुंदरता इनके लालित्य में होती है। उसी प्रकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय की भावनाओं की सुंदरता उनकी उमंग और उत्साह में होती है। जीवन उनका ताज होता है, जो इसका उपयोग नहीं करते, उनका कोई अभाव नहीं होता है, जो दुख को भोगते हैं नहीं। इस कविता में सरोजिनी नायडू ने पलाश के फूल की सुंदरता को उजागर किया है और उसके साथ ही जीवन के मूल्यों का भी संदेश दिया है |

1961 में सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू ने अपनी मां के द्वारा लिखे हुए रचना “द फिदर ऑफ द ड्वान” को प्रकाशित करवाया था | सरोजिनी नायडू की सबसे अंतिम लास्ट रचना “द इंडियन वेबर्स” प्रकाशित हुई थी|

सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी –

सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम की एक महान सेनानी थीं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अहम योगदान दिया था। वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुईं। इस आंदोलन के दौरान वो गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट, सीपी रामा स्वामी अय्यर, गांधीजी और जवाहर लाल नेहरू से मिलीं। सरोजिनी नायडू का संघर्ष आरंभ 1919 में रॉयल असेंबली द्वारा पास किए गए रोलेट एक्ट के खिलाफ शुरू हुआ था। इसके बाद उन्होंने कई राजनीतिक संगठनों के साथ मिलकर अंग्रेज सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।1921 में, गांधीजी के आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट में भी भाग लिया। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन के समर्थन में अपनी शक्तियों का उपयोग किया और देश को स्वतंत्र कराने के लिए लड़ाई लड़ी। सरोजिनी नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहुत सारे विरोधियों को झेला और उन्होंने कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने सत्याग्रह, नॉन कोऑपरेशन आंदोलन जैसे विभिन्न आंदोलनों में अपना सक्रिय योगदान दिया था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सरोजिनी नायडू एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्धी पाई थी। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह और अन्य आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई थी। सरोजिनी ने सत्याग्रह से जुड़े अनेक आंदोलनों में भाग लिया था। उन्होंने विदेशी वस्तुओं के विरोध में सड़कों पर उतरकर बड़ी संख्या में लोगों के साथ समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने खादी आंदोलन के समर्थकों के साथ अपनी भूमिका निभाई थी। सरोजिनी ने स्वतंत्रता संग्राम में  विदेशी वस्तुओं के विरुद्ध की यात्राओं में भी भाग लिया था। उन्होंने खादी बनाने और विदेशी वस्तुओं के बदले भारतीय उत्पादों का उपयोग करने के लिए अपने विचारों को समर्थन दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में वो गांधी जी के साथ जेल भी गयीं। वर्ष 1942 के  ̔भारत छोड़ो आंदोलन ̕  में भी उन्हें 21 महीने के लिए जेल जाना पड़ा। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए इंग्लैंड के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई थी। भारत में महिला सशक्तिकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठायी। उन्होंने राज्य स्तर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह महिलाओं को जागरूक किया।

सरोजिनी नायडू राजनीतिक करियर –

सरोजिनी नायडू ने राजनीतिक करियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया था। 1925 में वह मद्रास प्रदेश के संघ का सचिव बनीं थीं। उन्होंने मद्रास में स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिया और स्त्रियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। 1927 में उन्हें मद्रास लघु नियोजन विभाग के मंत्री के रूप में नियुक्ति मिली। उन्होंने कृषि विकास, सड़क निर्माण, औद्योगिक विकास, नौसेना विकास, स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा दिया था।1934 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के खिलाफ उनकी आलोचना की। स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद, देश को उस लक्ष्य तक पहुँचाने वाले नेताओं के सामने अब दूसरा ही कार्य था। आज तक उन्होंने संघर्ष किया था। किन्तु अब राष्ट्र निर्माण का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर आ गया। कुछ नेताओं को सरकारी तंत्र और प्रशासन में नौकरी दे दी गई थी। इनमें सरोजिनी नायडू भी एक थीं। 1947 में भारत की आजादी के बाद, उन्हें महानियंत्रक विभाग के मंत्री के रूप में नियुक्ति मिली। उन्होंने इस पद पर अपनी कौशल से नियंत्रण और वित्तीय नियोजन में मदद की। बाद में उनकी प्रतिभा के कारण उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया था |

सरोजिनी नायडू को मिले पुरस्कार एवं उपलब्धियां –

सरोजिनी नायडू को 1959 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वह पहली महिला थी जिसे इस सम्मान से नवाजा गया था। इसके अलावा, उन्हें 1961 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया था। सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने योगदान के लिए इस सम्मान के पात्र होने के साथ-साथ, उनकी राजनीतिक और साहित्यिक योगदान के लिए भी इस सम्मान को प्राप्त किया था।भारत सरकार के द्वारा उन्हें  “कैसर ए हिन्द “पुरस्कार से नवाजा गया |1967 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक​ टिकट भी जारी किया था | सरोजिनी नायडू को ‘भारत की कोकिला’ कहा जाता था

सरोजिनी नायडू को ‘भारत की कोकिला’ क्यों कहा जाता था-

एक दिन सरोजिनी जी गोपाल कृष्ण गोखले से मिली, उन्होंने सरोजिनी जी को बोला, कि वे अपनी कविताओं में क्रांतिकारीपन लायें और सुंदर शब्दों से स्वतंत्रता की लड़ाई में साथ देने के लिए छोटे छोटे गाँव के लोगों को प्रोत्साहित करें| संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं। उनके वक्तव्य जनता के हृदय को झकझोर देते थे और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर देते थे। वे बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं। सरोजिनी नायडू को ‘भारत की कोकिला’ कहा जाता था क्योंकि वह एक अत्यंत प्रभावशाली और प्रखर उच्चारण वाली कवित्री थीं। उनकी आवाज अत्यंत मधुर थी और वे अपनी कविताओं को भावात्मकता से उच्चारित करती थीं जो सभी को दिलों तक छू जाती थीं। लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर इन्होंने वहाँ उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था | उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को समाजी सुधार और स्वतंत्रता की आवाज दी थी। उनकी कविताओं में स्त्री शक्ति की प्रशंसा भी थी जो उन्हें समाज के लोगों के बीच लोकप्रियता और प्रभाव दिलाती थी।

सरोजिनी नायडू की मृत्यु –

सरोजिनी नायडू 2 मार्च, 1949 को हार्ट अटैक के कारण उनकी 70 वर्ष की आयु में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत में निधन हो गया । उनका निधन ने देशभर में शोक की लहर उत्पन्न कर दी थी और वे आज भी एक अमर शख्सियत के रूप में याद की जाती हैं। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें भारत सरकार द्वारा उनके योगदान को याद रखते हुए राष्ट्रमंडल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में नामित किया गया है। वास्तव में 20 वीं सदी के भारत के रत्नों में सरोजिनी का जीवन एक था | सरोजिनी जी भारत देश की सभी औरतों के लिए आदर्श का प्रतीक है, वे एक सशक्त महिला थी, जिनसे हमें राष्ट्रभाव प्रेरणा मिलती है |

सरोजिनी नायडू जयंती –

सरोजिनी नायडू की जयंती हर साल 13 फरवरी को मनाई जाती है। यह उनकी जन्मदिन होता है। इस दिन उन्हें याद करने के लिए भारत भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन उनके जीवन, उनके योगदान और उनकी काव्य रचनाओं को समर्पित किया जाता है। भारत सरकार भी इस अवसर पर उन्हें याद करती है और उन्हें श्रद्धांजलि देती है।

FAQ

Q : सरोजिनी नायडू का क्या कोई उपनाम भी था ?

Ans : जी हां बिलकुल, उनकी कविताओं ने उन्हें भारत की कोकिला नाम दिया.

Q : सरोजिनी नायडू का जन्म कब हुआ ?

Ans : 13 फरवरी, 1879 में

Q : सरोजिनी नायडू के माता – पिता का नाम क्या था ?

Ans : पिता अगोरेनाथ चट्टोपाध्याय, एवं माता बरदा सुंदरी देवी

Q : सरोजिनी नायडू के पति का नाम क्या था ?

Ans : डॉ गोविन्द राजुलू नायडू

Q : सरोजिनी नायडू का विवाह कब हुआ था ?

Ans : सन 1897 में

Q : सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला क्यों कहा जाता है ?

Ans : अत्यंत मधुर आवाज में अपनी कविता का पाठ करने के कारण लोग उन्हें भारत की कोकिला के नाम से पुकारते थे.

Q : सरोजिनी नायडू जयंती को किस दिन के रूप में मनाया जाता है ?

Ans : महिला दिवस के रूप में

Q : सरोजिनी नायडू की मृत्यु कब हुई ?

Ans : 2 मार्च 1949 में (दिल का दौरा पड़ने से)