भगत सिंह का जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography in Hindi)
भगत सिंह संधू ( उपनाम- भागो वाला ) का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में हुआ था । भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था जो एक किसान थे और उनकी माता का नाम विद्यावती (गृहिणी) था। भगत सिंह के पिता किसान थे और उनके परिवार में धन कम था, लेकिन उनकी माता बहुत उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी थी और उन्होंने भगत सिंह की शिक्षा की जिम्मेदारी ली थी। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत और स्वर्ण सिंह 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन के लिए जेल में थे | उनके चाचा सरदार अजीत सिंह, एक आंदोलनकारी नेता थे जिन्होंने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की और चिनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को संगठित करने का काम किया जिसमें उनके मित्र सैयद हैदर रज़ा ने उनका भरपूर साथ दिया | उनके चाचा सरदार अजीत सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज थे | इनका परिवार गदर पार्टी के सदस्य था इसलिए भगत सिंह के मन में भी शुरू से ही अंग्रेजों के प्रति घृणा और नफरत था और उनके मन में बचपन से ही भारत को स्वतंत्र कराने के लिए प्रयास करने का विचार रहता था.
पूरा नाम | शहीद भगत सिंह |
जन्म | 27 सितम्बर 1907 |
जन्म स्थान | पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) बंगा गांव |
माता-पिता | विद्यावती (गृहिणी), सरदार किशन सिंह |
भाई – बहन | रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर |
मृत्यु | 23 मार्च 1931, लाहौर |
प्रमुख संगठन | नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन |
किताब | Why I Am Atheist |
भगत सिंह की शिक्षा
भगत सिंह जी की प्रारंभिक शिक्षा दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल से संपन्न हुई | जब भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे, उस समय जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला तब उन्होंने जलियांवाले बाग का दौरा किया। वहाँ उन्होंने एक बोतल में उस बाग की मिट्टी को भर कर अपने पास रख लिया था ,जिसमें सामूहिक हत्याकांड में बर्बरता और क्रूरता से मारे गए लोगों के खून के धब्बे पड़े हुए थे। वह जहां भी जाते उस बोतल को अपने साथ रखते और साथ ले जाते थे। बाद में उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर (1923) से BA की पढ़ाई शुरू की |अपने कॉलेज के समय वह कई गतिविधियों जैसे कि नाटक और लिखित प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग लेते थे। जिसके चलते उन्होंने एक निबंध प्रतियोगिता भी जीती थी, जिसमें उनका विषय “भारत में स्वतंत्रता संग्राम के कारण पंजाब की समस्याएं” था। भगत सिंह बहुत सी विदेशी भाषा सीखने में रुचि रखते थे और उन्होंने अंग्रेजी, फारसी, अरबी और संस्कृत जैसी भाषाओं का भी ज्ञान रखा था।वह किताब पढ़ने के भी बहुत शौकीन थे, जिसके चलते महज 21 साल की उम्र में उन्होंने पचास से भी अधिक किताबें पढ़ ली थी | जब वह बी.ए. में थे तब उनके माता-पिता ने उसकी शादी करने की योजना बनाई. उन्होंने सुझाव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि, “यदि उनकी शादी गुलाम-भारत में होने वाली हैं , तो मेरी दुल्हन की मृत्यु हो जाएगी.”
बाद में BA की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लेने लगे थे | भगत सिंह पहले महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य थे। 1921 में जब चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। भगत सिंह ने गुरुद्वारा अंबाला में दानवीरों के संगठन नामक संगठन का गठन किया था जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए युवाओं को जोड़ना था। वे नई सोच वाले स्वतंत्रता सेनानी थे जो विद्यार्थी नेतृत्व के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए संगठित हुए। सन 1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया और इसके बाद सन 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को ज्वाइन किया जिसे चंद्रशेखर आजाद ने बनाया था | जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, भगवती चरण वोहरा, सुखदेव, राजगुरु और शाहिद अशफाकुल्ला खान जैसे नेता शामिल थे।
भगत सिंह का राष्ट्रीय आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियों में योगदान
1. काकोरी कांड
1925 शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए एक पैसेंजर ट्रेन जाती थी जिसमें काकोरी नाम के स्टेशन पर भगत सिंह और उनके कुछ साथी मिलकर ट्रेन से सरकारी खजाने को लूट लिया इस घटना को अंजाम देने के लिए भगत सिंह और उनके साथी पहले से ही वहां पर तैयार बैठे थे
इस घटना में उनके साथ राम प्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आजाद और बहुत सारे क्रांतिकारी शामिल थे इस घटना को आज भी हम लोग काकोरी कांड के नाम से जानते हैं जो कि इतिहास में प्रसिद्ध हो गया है.
काकोरी कांड के बाद से ही भगत सिंह अंग्रेजों के नजर में आ गए और अंग्रेजों उन्हें पकड़ने के लिए गांव-गांव और शहरों में छापा डालने लगे. काकोरी कांड में शामिल 4 क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया और 16 क्रांतिकारियों को जेल भेज दिया गया |
2. सैंडर्स हत्याकांड
जब भारत में साइमन कमीशन का आगमन तब उन्होंने साइमन कमीशन का विरोध किया उनके साथ लाला लाजपत राय थे। वे “साइमन वापस जाओ” के नारे लगाते रहे। इस आंदोलन के चलते उन पर लाठीचार्ज पर किया गया। इसमे लाला लाजपत राय बुरी तरह से जख्मी हो गए उनकी मृत्यु हो गई। लाजपत राय की मृत्यु होने के कारण देश की आजादी के लिए हो रहे आंदोलन और भी ज्यादा उग्र हो गया । लाला लाजपत राय की मृत्यु से भगत सिंह और उनके पार्टी को गहरा झटका लगा।उनके मन में एक ज्वाला भड़क रही थी तब भगत सिंह ने अंग्रेजों से बदला लेने की ठान ली और फिर उन्होंने अंग्रेजों को मारने का प्लान बनाया। उन्होंने अंग्रेज पुलिस अधिकारी स्कॉट को मारने का प्लान बनाया लेकिन गलती से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सांडर्स को मार डाला था। इस हत्याकांड में चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और उनके दोस्तों का सहयोग पूरी तरह से किया था | इस हत्याकांड के बाद पुलिस की धरपकड़ तेज़ हो गयी और वे अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर चले गए।
3. असेंबली में बम फेंकने वाली घटना
वह यह चाहते थे कि अंग्रेजों को यह पता चल जाए कि भारत के सपूत जाग गए हैं और वह अपने भारत को बहुत जल्द आजाद करा लेंगे वह अपना यह सूचना अंग्रेजों के पास किसी तरह पहुंचाना चाहते थे इसीलिए 8 अप्रैल 1929 को, उन्होंने अंग्रेजों के आत्म-सम्मान पर एक और बड़ा हमला करने की योजना बनाई।वह यह भी चाहते थे कि कोई खून खराबा न हो और किसी को कोई नुकसान ना पहुंचे और अंग्रेजों तक उनकी आवाज भी पहुंच जाए|
उन्होंने एचएसआरए के समकालीन सदस्य बटुकेश्वर दत्त के साथ सार्वजनिक गैलरी से असेंबली चैम्बर में दो बम फेंक दिए और वहां से भागने की बजाय वहीं खड़े होकर “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाने लगे। अंत में, उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
असेंबली चैम्बर में भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद जॉन पी. सॉन्डर्स (लाहौर षड्यंत्र प्रकरण) की हत्या का मामला फिर से संज्ञान में लिया गया। जिसमें भगत सिंह ने अपने केस की पैरवी खुद ही की थी जबकि उनके साथ बटुकेश्वर दत्त का केस अफसर अली ने लड़ा था।पूरी कानूनी कार्यवाही बेहद धीमी गति से हो रही थी, जिसको देखते हुए 1 मई 1930 को वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्देश दिया था। जिससे जस्टिस जे. कोल्डस्ट्रीम, जस्टिस आगा हैदर और जस्टिस जी सी हिल्टन समेत एक खास ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया था।
ट्रिब्यूनल को बिना दोषी की उपस्थिति के भी आगे बढ़ने का अधिकार था, वहीं ये पूरा मामला एक तरफा परीक्षण था जो कि शायद ही कोई सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करता था।
वहीं ट्रिब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपने 300 पेज का फैसला सौंपा। जिसमें कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि अंग्रेज सरकार के पुलिस अधिकारी सांडर्स हत्या के मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को दोषी पाया गया है।
जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिसके बाद भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के खिलाफ मुकदमा चलाया गया।
वहीं 7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 एफ के तहत फांसी की सजा सुनाई गई। वहीं इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने का दिन 24 मार्च 1931 को तय किया गया। जिसके चलते उन्हें लाहौर की बोर्स्टल जेल भेज दिया गया।
उन्होंने जेल में अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी जतिन दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।जबकि भगत सिंह ने 116 दिनों तक अपनी हड़ताल जारी रखी और अपने पिता के अनुरोध पर अपनी भुख हड़ताल ख़त्म कर दी।उनके द्वारा रचित डायरी Bhagat Singh’s Jail diary (now converted in a book), Canadian Society & Culture और लेख/दस्तावेजों को संग्रह विभाग द्वारा अभी तक सरंक्षित रखा गया है।
भगत सिंह की मृत्यु
24 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दोनों साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दी जानी थी। लेकिन देश के लोगों ने उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर यह लगने लगा था कि अगर भगत सिंह को रिहा कर दिया गया तो वे अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेकेंगा अतः 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव ,राजगुरु को निर्धारित समय से पहले ही फांसी दे दी गई।
जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई उन्होंने लेनिन की जीवनी पूरी पढ़ने का समय में मांगा। कहा जाता है कि जेल अधिकारियों ने जब यह सूचना दी गई की अब उनकी फांसी का वक्त हो गया है तो उन्होंने कहा था -“ठहरिये” एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने मिलने दो। 1 मिनट के बाद छत की ओर पुस्तक को उछाल कर बोले-” ठीक है अब चलो । ”
फाँसी पर जाते समय तीनों क्रांतिकारी मस्ती में मगन होकर गीत गुनगुना रहे थे-
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे।
मेरा रंग दे बसंती चोला। माय रंग दे बसंती चोला।।
जिस स्थान पर भगत सिंह को फांसी दी गई और संस्कार किया गया था, वह भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान का हिस्सा बन गया।
भगत सिंह के नारे –
- जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
- सूर्य विश्व में हर किसी देश पर उज्ज्वल हो कर गुजरता है परन्तु उस समय ऐसा कोई देश नहीं होगा जो भारत देश के सामान इतना स्वतंत्र, इतना खुशहाल, इतना प्यारा हो।
- राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।
- किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
5. मैं एक इन्सान हूँ और जो भी चीजे इंसानियत पर प्रभाव डालती है मुझे उनसे फर्क पड़ता हैं |
भगत सिंह की लोकप्रियता और विरासत
भगत सिंह उनकी प्रखर देशभक्ति, जो कि आदर्शवाद से जुडी थी. जिसने उन्हें अपनी पीढ़ी के युवाओं के लिए एक आदर्श आइकन बना दिया. ब्रिटिश इंपीरियल सरकार के अपने लिखित और मुखर आह्वान के माध्यम से वह अपनी पीढ़ी की आवाज बन गए. गांधीवादी अहिंसक मार्ग से स्वराज की ओर जाने की उनकी आलोचना अक्सर कई लोगों द्वारा आलोचना की गई है फिर भी शहादत के निडर होकर उन्होंने सैकड़ों किशोर और युवाओं को पूरे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.
शहीद दिवस (Shahid Diwas)
शहीद भगत सिंह के बलिदान को व्यर्थ न जाने देने के कारण हर साल उनके मुत्यु तिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. इन दिन उन्हें देश के सभी लोग श्रद्धांजलि देते हैं.
भगत सिंह का कहना था –
लिख रहा हूं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा।
मेरे लहू का एक एक कतरा इन्कलाब लाएगा।।
FAQ
Q : शहीद भगत सिंह जन्म स्थान क्या था ?
Ans : पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में
Q : भगत सिंह का जन्म कब हुआ ?
Ans : 27 सितम्बर 1907
Q : भगत सिंह की मृत्यु कब हुई ?
Ans : 23 मार्च, 1931
Q : भगत सिंह की मृत्यु का कारण क्या था ?
Ans : फांसी की सजा
Q : शहीद दिवस कब मनाया जाता है ?
Ans : 24 मार्च