नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती और पराक्रम दिवस
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिन्द फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 मार्च को मनाई जाती है। वर्ष 2022 में सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाई गई।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बार में :
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक नामक नगरी में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था. इनके 7 भाई और 6 बहनें थीं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा :
सुभाष चंद्र बोस ने कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से पढ़ाई की और साथ में भारतीय स्वतंत्रता संग्रामों में हिस्सा भी लेते रहे। बोस हमेशा से ही स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण की शिक्षाओं से सबसे अधिक प्रभावित थे। वर्ष 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया. लेकिन राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की तैयारी शुरू की और 1920 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (ICS) की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल कर लिया, लेकिन अप्रैल 1921 में उन्होंने भारत में चल रहे आंदोलनों के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आकर आजादी कि लड़ाई मे शामिल हो गए।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान और उपलब्धियाँ :
बोस ने भारतीय सिविल सेवा कि नौकरी छोड़ने के बाद आजादी की लड़ाई में पूरी तरह से समर्पित हो गए और अपना लक्ष्य भारत की आजादी को बना लिया था. इस लड़ाई मे सबसे पहले देशबंधु चितरंजन दास के सम्पर्क में आए और उनको अपना गुरु बना लिया. उन्होंने चितरंजन दास के साथ कई अहम कार्य किए जिसकी सराहना हर तरफ हुई जिसकी वजह से वे एक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए।
बोस ने एक युवा शिक्षक, पत्रकार और बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवकों के रूप में अपनी सेवाएं दी। लेकिन 1921 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जब वह जेल से वापस आये तो 1924 में उन्हें कलकत्ता नगर निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (महापौर) नियुक्त किया गया। महात्मा गांधी ने जब 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया तो सुभाष चंद्र बोस को फिर से हिरासत में ले लिया गया। जब वह जेल में रहते हुए कलकत्ता के मेयर चुने गए। हिंसक कृत्यों में अपनी संदिग्ध भूमिका के लिए उन्हें कई बार पुन: गिरफ्तार किया गया, लेकिन खराब स्वास्थ्य के लिए रिहा कर दिया गया।
1938 में नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन कर एक व्यापक औद्योगीकरण नीति तैयार की। पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ बोस ने कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडेंस लीग शुरू की थी . लेकिन बोस को कांग्रेस का नरम व्यवहार ज्यादा पसंद नहीं आया जिसके कारण उन्होंने 29 अप्रैल 1939 को कलकत्ता में हुई कांग्रेस की बैठक में अपना त्याग पत्र दे दिया और 3 मई 1939 को सुभाषचन्द्र बोस ने कलकत्ता में फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना कर दी।
सितम्बर 1939 में द्वितीय विश्व युद्व प्रांरभ हुआ और ब्रिटिश सरकार ने सुभाष के युद्ध विरोधी आन्दोलन से भयभीत होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सन् 1940 में सुभाष को अंग्रेज सरकार ने उनके घर पर ही नजरबंद कर रखा था. नेताजी ने सूझबूझ से वह से भाग निकले. बोस ने एक मुसलमान मौलवी का वेष बनाकर पेशावर अफगानिस्तान के रास्ते होते हुए बर्लिग पहुच गए वहा बर्लिन में जर्मनी के तत्कालीन तानाशाह हिटलर से मुलाकात की और भारत को स्वतंत्र कराने के लिए जर्मनी व जापान से सहायता मांगी।
जर्मनी में बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की. इसी दौरान बोस को नेताजी नाम से प्रसिद्ध हो गए. 3 जून 1943 को उन्होंने पनडुब्बी से जापान के लिए प्रस्थान किया. पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरु किया. पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहाँ स्थानीय भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और आर्थिक मदद करने का आह्वान किया और अपना प्रसिद्ध नारा दिया – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा.”
4 जुलाई 1943 को उन्होंने पूर्वी एशिया में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व संभाला और जापानी सहायता और प्रभाव के साथ, जापानी कब्जे वाले दक्षिण पूर्व एशिया में लगभग 40 हजार सैनिकों की एक प्रशिक्षित सेना बनाई। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की और अनंतिम स्वतंत्र भारत सरकार की घोषणा कर दी. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया. अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया. दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार द्वीप जीत लिए पर अंत में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और आजाद हिन्द फौज को पीछे हटना पड़ा. इसके बाद 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इंफाल के मैदानी इलाकों में चले गए।
6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया. इस भाषण के दौरान नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद मांगा. इस प्रकार, नेताजी ने गांधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता बुलाया.जापान के आत्मसमर्पण की घोषणा के बाद सुभाष चंद्र बोस दक्षिण पूर्व एशिया जा रहे थे, तभी कथित तौर पर एक विमान दुर्घटना में ताइवान के एक जापानी अस्पताल में 18 अगस्त 1945 में उनका मृत्यु हो गई।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचार :
- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा।
- उच्च विचारों से कमजोरियां दूर होती हैं। हमें हमेशा उच्च विचार पैदा करते रहना चाहिए।
- संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया, मुझमें आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ, जो पहले मुझमें नहीं था।
- अगर जीवन में संघर्ष न रहे, किसी भी भय का सामना न करना पड़े, तो जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।
- अपनी ताकत पर भरोसा करो, उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है।
- सफलता दूर हो सकती है, लेकिन वह मिलती जरूर है।
- सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती है। इसलिए किसी को भी असफलता से घबराना नहीं चाहिए।
- याद रखिए सबसे बड़ा अपराध, अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।